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Showing posts from November, 2021

अठखेलियाँ

 जीवन अपने आप से ही अठखेलियाँ खेलता है। पचास साल के वैवाहिक जीवन में पत्नी जी पहली बार बीमार ही नहीं हुई अस्पताल में भर्ती भी हो गई। मानो तूफान आ गया। मैं तीस पैंतीस साल से डायबिटीज, स्पांडलाइटिस व अवसाद से जूझ रहा हूँ पर कोई बीमार ही नहीं मानता। पत्नी जी बीमार हुईं तो मुझे भी लगा कि मैं वास्तव में दोगुना बीमार हो गया पर साथ ही उनकी सेवादारी में अपनी बीमारी भूल ही गया। एक अनजाने भय से ग्रस्त हो गया कि पत्नी जी चली गई तो मेरा क्या होगा। अचानक ही आसमान की ओर हाथ उठ जाते हैं कि हे पालनहारे ऐसा न करना। जोड़ी बिछड़े न। विदा हो तो एक साथ। सत्येंद्र सिंह

आऊंगा

 आऊंगा  तुम्हारे पास  अवश्य/स्वप्न में सही  पर आऊंगा अवश्य। मानलो  किसी कारणवश मैं नहीं आ पाया तो तुम्हीं चले आना  जागते में सोते में  स्वप्न में पर आना। सत्येंद्र सिंह

झरोखे (२)

 पुलिस रिपोर्ट में उसका नाम भी था। उसे पता चला। लेकिन वह घबराया नहीं, क्योंकि उसने कुछ गलत किया ही नहीं था। प्रभारी एक महिला थी। उसका मुँह कुछ टेढ़ा था और एक आँख छोटी थी। कानी तो नहीं थी पर लगती कानी थी। वह किसी का न तो अच्छा कर सकती थी और न अच्छा देख सकती थी। बॉस तेज तर्रार था सो उससे डरती ही नहीं घबराती भी थी। लेकिन जब सुशीला के पिता ने बॉस के विरुद्ध पुलिस में बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई थी तबसे वह समाज सेविका और निर्भीक शेरनी बन गई थी। सुशीला की हमदर्द बन गई और उसे सामने रखकर सभी महिलाओं को एकत्र कर लंच समय में ऑफिस के चारों ओर जुलूस निकालती। एक दिन उससे बोली कि तुम्हें पुलिस इंस्पेक्टर नगरकर ढूंढ रहा था। उसने घूरा ढूंढ रहा था तो उसने आँख मिचकाली। वह इंस्पेक्टर के पास पहुँचा।  अपना परिचय दिया तो इंस्पेक्टर ने बड़े सम्मान से बिठाया और पूछा कि क्या मामला था तो उसने बताया कुछ नहीं। इंस्पेक्टर ने हँस कर कहा, यह हम भी जानते हैं कि यहाँ ऐसा कोई कमरा नहीं कि किसी पोस्टग्रेजुएट लड़की को खींचकर ले जाया जा सके। ऐसी झूठी और बेबुनियाद की रिपोर्ट हमारे पास बहुत आती हैं। इंस्पेक्टर ने उससे हाजिरी