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रेल अस्पताल और इलाज़

                रेल अस्पताल और इलाज      रेल अस्पताल में डॉक्टर के चैंबर के सामने लाइन में खड़ा था कि एक मित्र का फोन आ गया। मैंने बताया कि मैं कहाँ हूँ। मेरे मित्र ने कहा कि सरकार अस्पताल की दवा उतनी प्रभावी नहीं होती, जितनी प्राइवेट डॉक्टर द्वारा लिखी अच्छी कंपनी की दवा। पता नहीं, इस बात में कितनी सच्चाई है और यह धारणा क्यों बनी, परंतु सच यह है कि रेलवे अस्पताल में इलाज कराने का अपना ही आनंद है। केस पेपर बनबाने के लिए लाइन, डॉक्टर के पास जाने के लिए लाइन और फिर दवा लेने के लिए लाइन। लाइन तोड़ने वालों से तू-तू, मैं -मैं, आते जाते परिचितों से बातचीत और नोंकझोंक, अपनी अपनी बीमारी का बखान, केस पेपर बनाने वाले बाबू की शिकायत, डॉक्टरों की बुराई और तारीफ सब कुछ याद आने लगा।      अधिकारी की डायरी जेब में दिखती हुई रखकर कर्मचारियों की लाइन में आगे जाकर खड़े होने की सुविधा कब और कहाँ से पैदा हो गई यह तो नहीं पता लेकिन मुझे यह कतई पसंद नहीं कि जो घंटों से लाइन में खड़े हैं उनसे आगे जाया जाए या सीधे डॉक्टर के पास चला जाया जाए। आम इंसान और आम मरीज बनकर इलाज कराना मुझे अच्छा लगता है। पहले एपीसी और