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                 जैसी करनी वैसी भरनी      जैसी करनी वैसी भरनी, टीवी में एक बाल कलाकार जब गा रहा था कब मैं खाना खा रहा था और जीभ पर दाँत उस जगह लगा जहाँ पटले जीभ काट दी थी। खाते खाते मैं सुन्न हो गया।  मेरे साथ तो अक्सर ऐसा होता है कि एक बार जहाँ जीभ कट जाती है वहीं दंत महाशय प्रहार करते हैं। थोड़ी राहत मिली और मैं सोचने लायक हुआ तो सबसे पहले यही खयाल आया कि ऐसा मैंने कर दिया जो ऐसा फल मिला है। न जीभ से कुछ कहा न ही दाँत से। उन दोनों में अनबन है तो मैं क्या करूं?  दाँत का धर्म ही काटना है तो जीभ के भाग्य में भी सहना  बदा है। लेकिन तकलीफ मुझे महसूस होती है। दाँत को काटना है, काटे, जीभ को सहना है सहे, मैं इनके बीच कहाँ से आ गया। मैंने ऐसा कौन सा कर्म किया जो तकलीफ मुझे महसूस होती है।      ऐसे ही एक दिन सुबह बाजार जा रहा था कि सड़क किनारे चबूतरे पर बैठे दो मित्रों ने आवाज लगा कर अपने पास बुला लिया। वे आपस में बहस कर रहे थे। एक कह रहा था कि तू पप्पू है और दूसरा कह रहा था कि तू कौन सा मोदी है?  दोनों हाथ फैला कर चिल्लाए जा रहे थे। मैंने दोनों को रोका और कहा कि भई मैं तो आज़ाद हूँ।  दोनों अपन