जैसी करनी वैसी भरनी


     जैसी करनी वैसी भरनी, टीवी में एक बाल कलाकार जब गा रहा था कब मैं खाना खा रहा था और जीभ पर दाँत उस जगह लगा जहाँ पटले जीभ काट दी थी। खाते खाते मैं सुन्न हो गया।  मेरे साथ तो अक्सर ऐसा होता है कि एक बार जहाँ जीभ कट जाती है वहीं दंत महाशय प्रहार करते हैं। थोड़ी राहत मिली और मैं सोचने लायक हुआ तो सबसे पहले यही खयाल आया कि ऐसा मैंने कर दिया जो ऐसा फल मिला है। न जीभ से कुछ कहा न ही दाँत से। उन दोनों में अनबन है तो मैं क्या करूं?  दाँत का धर्म ही काटना है तो जीभ के भाग्य में भी सहना  बदा है। लेकिन तकलीफ मुझे महसूस होती है। दाँत को काटना है, काटे, जीभ को सहना है सहे, मैं इनके बीच कहाँ से आ गया। मैंने ऐसा कौन सा कर्म किया जो तकलीफ मुझे महसूस होती है।

     ऐसे ही एक दिन सुबह बाजार जा रहा था कि सड़क किनारे चबूतरे पर बैठे दो मित्रों ने आवाज लगा कर अपने पास बुला लिया। वे आपस में बहस कर रहे थे। एक कह रहा था कि तू पप्पू है और दूसरा कह रहा था कि तू कौन सा मोदी है?  दोनों हाथ फैला कर चिल्लाए जा रहे थे। मैंने दोनों को रोका और कहा कि भई मैं तो आज़ाद हूँ।  दोनों अपनी बहस भूलकर मेरे ऊपर चढ बैठे। कहने लगे अब तुम कौनसे आज़ाद हो।  मैंने क्षमा मांगी और कहा कि मैं तो तुम लोगों की बात आगे बढा रहा था। वरना मैं तो सब्जी लेने निकला था। पत्नी ने तुरंत लाने को कहा है। तब उनको भी याद आया कि उनकी पत्नियों ने उन्हें भी सब्जी लेने भेजा था पर बहस करने में भूल गए। जल्दी से बोले चलो चलो हम भी सब्जी लेने चलते हैं। सब्जी के दाम आसमान छू रहे थे। वे सब्जी वाले से बोले कि आज सब्जी इतनी महंगी क्यों है? सब्जी वाला फुसफुसाया आज मंडी से सब्जी नहीं आई, सेठ के यहाँ रेड पड़ी है। उन दोनों ने पहले मेरी ओर देखा और फिर एक दूसरे को देखते हुए बोले जैसी करनी वैसी भरनी। मैंने उनसे सब्जी लेकर लौटते हुए कहा कि सुबह लोग भगवान का नाम लेते हैं और तुम लोग राजनीतिक बहस में लग गए। वे बोले लोकतंत्र में हर नागरिक को राजनीतिक समझ होनी चाहिए। और किसी का पक्ष थोड़े ही ले रहे थे, अपनी समझ मजबूत कर रहे थे। वैसे तो जैसी करनी वैसी भरनी।

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